“कौन कहता है आसमान में सुराग नहीं हो सकता  एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो – दुष्यंत कुमार
            
किसी विद्वान ने सच ही कहा है कि साहित्य की भाषा कालजई होती है जो समय के साथ अपने अर्थों में बदलाव लाती है क्योंकि साहित्यकार अपने समय की आवश्यक सामाजिक घटनाओं की आवाज़ को शब्द देने का प्रयास करता है लेकिन उसके द्वारा लिखी रचना  वर्तमान की सीमाओं में बंधी रहने नहीं रहना चाहती और उसे पार करके भविष्य में भी अपने बदले हुए तेवर के साथ सामाजिक व्यवस्था में सटीक प्रहार का एहसास कराती है. कवि दुष्यंत की उपर लिखी  पंक्ति को  ध्यान से पढ़ने पर यही एहसास होता है………
                       आज की भाग दौड़ एवं रोजी-रोटी की तलाश में व्यस्त आदमी स्वयं में उलझा हुआ सुबह से शाम की घड़ियां गिनता रहता है उसे अपने आसपास के सामाजिक जीवन राष्ट्रीय हलचल एवं वैश्विक हलचल में अपनी भागीदारी के बारे में अपनी सहमति या विरोध व्यक्त करने का समय ही नहीं मिलता . और वह सामाजिक भीड़ का हिस्सा बनकर रह जाता है हमें ऐसा लगता है कि है कि मैं इस बदलाव में कुछ भी करने में सक्षम नहीं हूं लेकिन सच यह नहीं है. दुनिया के हर व्यक्ति की एक विशिष्ट भूमिका होती है जो समाज और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण साबित होती है. आप इस समाज के एक छोटे से हिस्से है लेकिन इसी छोटे-छोटे हिस्सों से मिलकर ही यह समाज देश राष्ट्र और पूरी दुनिया बनती है. 

इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि  इस पृथ्वी पर आने के साथ ही आपको यह अधिकार प्राप्त हो जाता है.  इसके लिए जरूरी है कि हम आसपास के सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक हलचल एवं बदलाव के प्रति जागरूक रहे उसके सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्ष के बारे में जानकार बने.   समय-समय पर प्रश्न उठाएं. 

यह प्रश्न आवश्यक नहीं कि किसी पत्र पत्रिका की सुर्खियां बने, बल्कि समाज के बीच आपस में चर्चा करके भी प्रश्न उठाए जा सकते हैं इसी प्रश्न उठाने के करण सत्ता में परिवर्तन होता है देश और विश्व में बदलाव होते हैं . आपके पास सोशल मीडिया के माध्यम से मित्रों और समाज के शुभचिंतकों का एक बड़ा कुनबा आपके आसपास इर्द-गिर्द रहता है उसमें भी अपनी बात पहुंचा कर आप एक चेतना जागृत कर सकते हैं. इसी प्रश्न उठाने का विश्व स्तर पर एक प्रयास देखिए—


            
अभी विगत 20 नवंबर 2024 को समाप्त जी-20 देश के सम्मेलन में कई विषयों पर गंभीर चिंतन हेतु प्रस्ताव रखे गए जिसमें विश्व स्तर पर आर्थिक सामाजिक जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर चर्चा की गई. इसमे से कई विषय समाधान एवं निर्णय तक पहुंचने में सफल भी रहे लेकिन कई प्रश्न ऐसे भी उठाए गए जो प्रस्तावित  किए गए किंतु चर्चा के पूर्व ही प्रस्ताव के साथ केवल प्रश्न  बनकर समाप्त हो गए.  लेकिन प्रश्न उठाने का यह प्रयास वैश्विक समुदाय तक अपनी बात पहुंचाने की हलचल के साथ उसकी उपलब्धियां में शामिल हुआ. उन्होंने प्रश्न उठाया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ में द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में 1945 में पांच प्रमुख शक्तियां अमेरिका रूस चीन ब्रिटेन फ्रांस के पास वीटो पावर दिए गए थे जो जो आज भी यथावत उनके पास ही है शेष देश दो वर्षीय कार्यकाल के लिए शामिल किए जाते हैं.   21वीं सदी में   दुनिया के संयुक्त आवाज के लिए अधिक देशों को इसमें शामिल करना आज  की जरूरत है. लेकिन अब तक यह नहीं हो पाया है. इस प्रश्न पर कोई चर्चा नहीं हो सकी.  किंतु जी-20 में उठाया गया यह प्रस्ताव ऐसे प्रश्न उठाने वाले विषय हैं जो अपनी आवाज को दुनिया के सामने रखकर सजग होने का प्रमाण देते हैं.  जी हां प्रश्न उठाना ही सजग नागरिक  की पहचान है.

अपने सामाजिक संरचना के दौर में हम सुबह समाचारों से लेकर अपने मित्रों से बातचीत में भी बहुत सी बातें जानते हैं सीखते हैं, आज तक हमने सीखा है

आंख से देखी पर भरोसा करो, कान पर नहीं, क्योंकि कान से सुनी बात गलत भी हो सकती है.

लेकिन आज की परिस्थितियों में बुजुर्गों की सीख भी गलत साबित हो रही है.

वर्तमान समय में आंख और कान दोनों मीडिया  और टेलीविजन के माध्यम से हमारे सामने परोसी जा रही है अपनी खबरों को बार-बार दिखा कर वह हमें इसे मानने को मजबूर करती रहती है लेकिन इसमें  कितनी  सत्यता  है यह जागरूकता का विषय है , क्योंकि वर्तमान आर्थिक और भौतिक विकास के युग में जहां हर व्यक्ति या संस्था आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक भंवर जाल के दबाव में ऐसी फंसी हुई है कि यह जानकारी नहीं मिल पाती कि कौन  किसके दबाव में है. , कौन सी ताकत , उस पर कितना प्रभाव डाल रही है या दूसरी भाषा में यह कहना उचित होगा कि वह कितना  दबाव सहन करके भी  सच के पक्ष में  खड़ा रह पाता है. इसके प्रति आपको जागरूक रहना होगा जागरूकता के बिना हम सही प्रश्न नहीं उठा पाएंगे.

प्रश्न उठाना  सजकता की पहचान है. अपने आसपास की सामाजिक घटनाओं के बीच क्यों कैसे जैसे प्रश्न जहां आपकी आपको जागरूक बनाते हैं वही आपको देश के एक सजग नागरिक की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देते हैं . सजग नागरिक समाज का सम्माननीय नागरिक होता है. जो हर सकारात्मक बदलाव में शामिल होता है.  समय के सामाजिक बदलाव के साथ नियम कानून के बदलाव में भी अपनी विशिष्ट भूमिका अदा करता है. एक सजग नागरिक  ही अपने देश के राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन की धुरी है.

आइए चिंतन के अपने इस पक्ष को प्रमाणित करने के लिए मैं कुछ घटनाओं पर आपका ध्यान खींचने चाहूंगा हमें मालूम है कि पहले सड़क पर यदि कोई दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति या मित्र हमें दिख जाए तब हम अपरिचित होने के बावजूद भी उसके सहयोग के लिए आगे बढ़कर उसे अस्पताल पहुंचाने एवं आवश्यक सामग्री  सहयोग देने के लिए आगे बढ़ जाते थे, लेकिन बदलती परिस्थितियों में पुलिस प्रशासन के बढ़ते दबाव ने आम आदमी को इस मानवीय  पक्ष से दूर कर दिया लेकिन बातचीत में कई प्रश्न इस संबंध में अलग अलग स्तर पर उठते रहे. हरिशंकर परसाई जैसे व्यंग्य लेखक ने अपने व्यंग लेख और नाटक *इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर*    के मंचन कर इस तरह के प्रश्न उठाने शुरू किये और मंचों पर बार-बार खेले गए नाटकों के माध्यम से अपने प्रश्न की सार्थकता से हजारों लाखों लोगों को जोड़ दिया. आम आदमी अपने मित्रों को सहयोग देने में भी पुलिस प्रशासन से जब प्रश्न करने लगा, तब शासन ने इसे महसूस किया.  वर्तमान कानून व्यवस्था में संशोधन कर दुर्घटना में घायल व्यक्ति को सहयोग करने का सिद्धांत पुनः लागू करने की कोशिश की जा रही है जिसे आम आदमी के स्वभाव में वापस आने में थोड़ा समय लगेगा.

समय-समय पर जो सामाजिक बदलाव हुए हैं चाहे वह कानूनी ,सामाजिक या राजनीतिक हो आपके प्रश्न उठाने से ही हुए हैं.  इसलिए आपकी असहमति की जानकारी  सत्ता और समाज  तक पहुंचाने के लिए प्रश्न उठाना बहुत ही जरूरी है.  यही आपको समाधान का रास्ता खोजने हेतु अग्रसर करेगा.            

सच मानिए जिस दिन आप प्रश्न उठाने लग जाएंगे. भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज बुलंद होगी. शासकीय कार्यों में तेजी आने लगेगी. स्वच्छ राजनीति और राजनीतिक नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त होगा. इसलिए जरूरी है जागरूक रहना और प्रश्न उठाना. सामाजिक जागरूकता और प्रश्न उठाने का हमारा संकल्प हमारे समाज एवं प्रशासन को जहां दिशा देने में सक्षम होगा वही हमें एक सजग नागरिक की पहचान देगा जो किसी भी देश समाज एवं विश्व की धरोहर है.

बस इतना ही
फिर मिलेंगे अगले चिंतन में —

लेखन एवं प्रस्तुति
बीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव
मनेन्द्रगढ़, 497442
संपर्क 9425 581356

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